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तुम्हारा आना

tumhara aana

रविशंकर उपाध्याय

अन्य

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रविशंकर उपाध्याय

तुम्हारा आना

रविशंकर उपाध्याय

और अधिकरविशंकर उपाध्याय

    तुम्हारा आना ठीक उसी तरह है

    जैसे रोहिणी में वर्षा की बूँदें

    धरा पर आती हैं पहली बार

    जैसे रेड़ा के बाद फूटते हैं धान

    और समा जाती है एक गंध मेरे भीतर।

    तुम्हारा आना महज़ आना नहीं है

    बल्कि एक मंज़िल की यात्रा है

    जिसमें होते हैं हम साथ

    वहाँ कभी फिसलना होता है तो कभी सँभलना भी

    उठना होता है तो कभी गिरना भी।

    तुम्हारे होने की वजह से

    शांत जल में उठती रहती हैं लहरें

    घुप्प अँधेरे में भी कहीं चमकती है एक रोशनी

    तुम्हारा होना महज़ होना नहीं है

    तुम्हारा आना सिर्फ़ आना भी नहीं है

    यह तुम्हारी गति है जिसमें

    चलना है.

    और चलते जाना है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उम्मीद अब भी बाक़ी है (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : रविशंकर उपाध्याय
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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