Font by Mehr Nastaliq Web

तुम दरवाज़े पर खड़ी हो

tum darwaze par khaDi ho

आदित्य शुक्ल

अन्य

अन्य

आदित्य शुक्ल

तुम दरवाज़े पर खड़ी हो

आदित्य शुक्ल

और अधिकआदित्य शुक्ल

    तुम दरवाज़े पर खड़ी हो

    तुम्हारा चेहरा दिख रहा है

    तुम्हारा चेहरा मेरे चेहरे से एक ‘जज़्ब समय’ में बात कर रहा है

    हम तस्वीरों जैसे तो नहीं हैं

    तस्वीरों जैसे मृत तो नहीं

    हम अपने-अपने दरवाज़े पर खड़े हैं

    हमारी अपनी-अपनी आवाज़ है

    साँसें हैं—बहुत पास-पास

    मुझे ऐसा भ्रम होता है—भ्रम होता है मुझे

    मैंने तुमसे इतना कुछ कहा, लेकिन हर बार मुझे मेरा कहा मेरे बारे में कहा सुनाई देता है

    लगता है कि मैं तुम पर अपना झूठ लाद रहा हूँ

    तुम उस बोझ को लेकर एक व्यस्त रेलवे स्टेशन पर भटक रही हो

    ने दि बी ते

    पेड़ों की आँखों से टपकते हैं आँसू…

    जाने किसकी तलाश में,

    क्यों ता है म…

    स्रोत :
    • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए