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नए इलाक़े में

nae ilaqe mein

अरुण कमल

अन्य

अन्य

अरुण कमल

नए इलाक़े में

अरुण कमल

इन नए बसते इलाक़ों में

जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान

मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ

धोखा दे जाते हैं पुराने निशान

खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़

खोजता हूँ ढहा हुआ घर

और ज़मीन का ख़ाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ

मुड़ना था मुझे

फिर दो मकान बाद बिना रंग वाले लोहे के फाटक का

घर था इकमंज़िला

और मैं हर बार एक घर पीछे

चल देता हूँ

या दो घर आगे ठकमकाता

यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है

रोज़ कुछ घट रहा है

यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं

एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया

जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ

जैसे बैशाख का गया भादों को लौटा हूँ

अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ

और पूछो—

क्या यही है वो घर?

समय बहुत कम है तुम्हारे पास

चला पानी ढहा रहा अकास

शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देख कर

स्रोत :
  • पुस्तक : स्पर्श भाग-1, (कक्षा-9) (पृष्ठ 86)
  • रचनाकार : अरुण कमल
  • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
  • संस्करण : 2022
  • रचनाकार : अरुण कमल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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