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प्रिय गोरक्क्षक जी,

priy gorakkshak ji,

शुभम श्री

शुभम श्री

प्रिय गोरक्क्षक जी,

शुभम श्री

प्रिय गोरक्क्षक जी,

सादर परनाम। आसा है सकूसल होगे एबम् आनंद होगे।

पूजनिया गोमाता के उद्धार करने के लिए

कोटी कोटी नमन

आगे दरख़ास करता हु कि मेरे पास भी एक गइया है उजरकी

करकी बिका गई भादो में

अत्यंत दुख होता है कि मेरे बाबूजी के समय

बथान पर एक दर्जन माल जाल था

अब बथान सुना लगता है

प्रंतु बिवसता यह थी के

करकी का नखड़ा बहुत्ते जादा था

बिना खल्ली के कुट्टी में मूँह नय देती थी

तरकारी भी खिलाने परता था, केला कोबी पपीता भी

रोज पँखा चलाने परता था, गाना बजाने परता था डेक मे

आठ कीलो दूध होता था

तो पर भी कोय किनता नय था

जरसी गाय का पतला दूध

खुआ भी नय परता था ठिक से

भला हुआ बिकाई

उजरकी देहाती है

चार कीलो में ऐसा मोटा छाली होता है

भैंसी दूध को फैल करती है

प्रंतु सबिनय निबेदन है कि

उसके हेतु भी कुट्टी नय जुट रहा है

घाँस गढ़ने बहुत दुर जाना परता है

जिसके रस्ता में मेरी बहीन को छौड़ा सब बहूत तंग करता है

अभी तक उसके कारन चार कचिया हेरा गया

चरवाही ज़मीन पर भी एम्स खुलने वाला है

सो भी घेरा गया

कभी कभी खेत में घुसाते थे चोरा के

सो खेत पर भी एपाटमेंट बनने लगा

अतः आप कृप्या कर के उजरकी के हेतु भी

पाँच कट्ठा बढ़िया ज़मीन का बंदोबस्ती का प्रबंध करवाने की कृप्या कीजिए

अन्यथा सकरेटेरिएट अथवा आपके कारजालय के मैदान में पसु को चरने का अनुमति दिलबाइए

आपका बिस्वासी

गोपालक

स्रोत :
  • रचनाकार : शुभम श्री
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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