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देवदीपावली

dewdipawli

राधावल्लभ त्रिपाठी

अन्य

अन्य

और अधिकराधावल्लभ त्रिपाठी

    कार्तिक की पूर्णिमा के उत्सव पर

    काशी में गंगा के तट पर

    विश्वनाथ के घर के आगे

    जब मनती है देवदीपावली

    गंगा अपनी लहरों पर तिरते असंख्य पावन दीपों से

    आरती उतारती है शंकर महादेव की।

    दियों की पाँतें लहरों पर सरकती हैं

    अगणित दीपों की झिलमिलाहट में

    जैसे आकाश से उतर आता है नक्षत्रों का चक्रवाल

    गंगा के तल पर।

    फिर तो आकाश के मंडप के नीचे

    गंगा तट के रंगमंच पर

    शंखों और नगाड़ों की तीव्र वादन में

    अर्द्धनारीश्वर लास्य और तांडव एक साथ करते हैं

    नौकाओं में बैठे विदेशी सैलानी

    चकित होकर ताकते रह जाते हैं

    एक और गंगा के जल में बिछती चाँदनी

    चाँदी के सेतु दोनों पाटों को जोड़ते

    उनके आस-पास फैली दीपों की क़तारें

    और उनके बीच सरकती

    सैंकड़ो नौकाएँ

    (और एक अंश प्रक्षिप्त भी)

    कोई जुआ खेल कर, कोई मदिरा पीकर

    कोई पटाखे चलाकर

    कोई बिजली की रोशनियों के वितान रचकर

    कुछ और लोग पूजामंगल के शुभसंभार लजाकर

    दीपोत्सव का आयोजन करते हैं

    जिन्होंने अपने आपको दीपक बना लिया है

    उनके लिए तो नित्य दीपावली है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राधावल्लभ त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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