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सुख गर्भजल की तरह ऊष्म था

sukh garbhjal ki tarah ushm tha

आशुतोष दुबे

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आशुतोष दुबे

सुख गर्भजल की तरह ऊष्म था

आशुतोष दुबे

और अधिकआशुतोष दुबे

    सुख गर्भजल की तरह ऊष्म था

    जिसमें तैरता रहा मैं अनगिनत वर्ष

    एक आदिम अँधेरे में सुनते हुए

    रोशनी की तरह चमकती आवाज़ें

    जैसे कोई सुनता है नींद में बारिश

    या रेल की पटरियों से लगाता है कान

    और जागता है आता हुआ समय सुनकर

    कहीं तकलीफ़ के निशान ढूँढ़े से नहीं मिलते थे

    हवा में कहीं नहीं धँसी थी कोई चीख़

    जब जन्म दिया माँ ने मुझको

    मुझे याद है, मैं बिल्कुल रोया नहीं

    मुस्कुराया उसकी ओर देखकर ऐसे

    जैसे पुराने दोस्त मिलने पर मुस्कुराते हैं

    फिर वह तो गई संपूर्ण सुख की थकान में

    पुलक में डूबी हुई आकंठ

    और मैंने प्रेम किया

    पास बैठी हुई उस प्रसन्न स्त्री से

    जिसकी उँगली थाम मैं दाख़िल हुआ इस दुनिया में

    यहाँ आने और प्रेम करने के दरमियानी साल

    रात की ओस की तरह घुल गए थे दिन के बादलों में

    उसके होंठों के ऊपर पसीने का नमक था

    उसकी गंध ऐसी थी

    जैसे पहली फुहार से भीगी धरती

    और यह सब घटित हुआ पल भर में

    आषाढ़ की एक साँझ

    जब दुनिया बारिश के गाढ़े परदे की ओट हो रही थी

    मैं बैठा था एक पत्थर पर बिल्कुल ख़ाली

    कि किसी गुज़रे जन्म की यह कौंध

    मुझे इस तरह भर गई लबालब

    कि मैंने फिर से सीखा अपना

    पैदा होना और प्रेम करना

    स्रोत :
    • पुस्तक : असंभव सारांश (पृष्ठ 55)
    • रचनाकार : आशुतोष दुबे
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2002

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