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ठसक

thasak

मिथिलेश कुमार राय

अन्य

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और अधिकमिथिलेश कुमार राय

    साहब की मेम को देखा तो लगा

    कि ये जगने से लेकर सोने तक एक अलग तरह की ठसक में रहती हैं

    मैंने ठसक में साहब के कुत्ते को भी देखा

    ठसक में जब भी देखा था

    मंत्रियों को देखा था

    और उनके संतरियों को ही देखा था

    ठसक में कभी देखा था तो पदाधिकारियों को देखा था

    और उनके वाहन के चालक को देखा था

    किसी दफ़्तर के बड़का बाबू को जब भी देखा

    हमेशा एक ठसक में ही देखा

    और उस दफ़्तर के चपरासी को भी

    किसी पत्रकार को जब कहीं जहाँ भी देखा

    बड़े ठसक में ही देखा

    एक दरोग़ा की ठसक का तो कहना ही क्या

    सिपाही को भी इतने ठसक में देखा कि देखकर डर गया

    मैंने मंदिर के पुजारी को देखा

    और जंतर-मंतर करने वालों को भी

    रेलवे स्टेशन पर कुली को देखा और खोमचे वाले को

    मैंने गैस के वेंडर को भी देखा और दूधवाले को भी

    ज़मींदार तो ख़ैर पैदाइशी ठसकवाले ही होते हैं

    शहर को जब भी देखा था

    ठसक में ही देखा था

    कभी-कभी किसी गाँव को भी

    कुछ देर के लिए ठसक में देखने का मौक़ा मिला है मुझे

    किसान-मजूर का मुझे पता नहीं

    उन्हें कम ही देखा

    लेकिन ठसक में कभी नहीं देखा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मिथिलेश कुमार राय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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