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थका बैंगनी फूल

thaka baingni phool

सविता सिंह

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सविता सिंह

थका बैंगनी फूल

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    उसके पाँवों में गिलट की सुंदर बेड़ियाँ थीं

    कमर में कमरबंद

    हाथ गोदनों से मढ़े हुए थे

    एक तरफ़ से फटे ब्लाउज़ से उसका थका बदन झाँक रहा था

    खुले उलझे हुए बाल महीनों से ज्यों सँवारे गए हों

    उसके चेहरे को यूँ ढँके थे मानो

    कँटीली किसी झाड़ी से झाँकता कोई जंगली फूल

    सिर पर लकड़ी का बड़ा एक गट्ठर उठाए

    बढ़ी चली जा रही थी वह इस दृश्य से बाहर

    एक बेचैन रफ़्तार से

    बाहर तेज़ धूप थी

    नीम और बबूल ख़ूब ठीक से खिले थे

    जैसे वे कोई पेड़ हों फूलों के गुलदस्ते हों

    कुछ ग़रीब बच्चे बग़ल के गंदे नाले में नहा रहे थे

    एक गाय अपना रास्ता भूल थक कर

    पेड़ों की छाँह छोड़ धूप में ही खड़ी हो गई थी

    गिलट की बेड़ियों वाली औरत कहीं खो चुकी थी

    उसकी जगह बग़ल की झाड़ियों से झाँकता

    सचमुच एक बैंगनी फूल था बेहद थका

    पूरे दृश्य को करुण बनाता हुआ

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 39)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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