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शुद्धिपत्र

shuddhipatr

आरुद्र

अन्य

अन्य

आरुद्र

शुद्धिपत्र

आरुद्र

और अधिकआरुद्र

    भगवान् के

    छापेख़ाने द्वारा प्रकाशित

    मानव प्रकृति के काव्य में

    छापे की अनगिनत ग़लतियों को हमें

    यहीं सुधार लेना होगा

    समाज-ग्रंथ पर

    सनातनियों ने

    रूढ़िवादी नियमों की जिल्द चढ़ाई है

    उसके टाँकों और गाँठों को ढीला कर

    नई सुंदर-सी जिल्द बाँधेंगे

    वैसा करने से पहले ही

    अस्त-व्यस्त रखे जीवन के फ़र्मों को

    यथा-स्थान जमा कर

    कथा-क्रम को सुव्यवस्थित बनाएँगे

    युग-पुरुष प्रूफ़रीडर है

    जगत् काव्य को जिन्होंने

    सुधार दिया है,

    किंतु परिस्थिति-कम्पोजीटर के पास

    करेक्शन करने के लिए

    टाइप नहीं है

    तो

    नए टाइप बनवा लेंगे

    पूरे काव्य को फिर से छपवाएँगे

    तब तक इस शुद्धिपत्र को

    सब मिलजुल कर ठीक तरह से बनाएँगे

    यह मानना ग़लत है कि यह काव्य विषादांत है

    इसका अंत समझना बड़ी भूल है

    यह है अनंत और सुखपूर्ण

    इस निराशा से आशा का जन्म लेना है समुचित

    समकालीन जीवन-विभावरी में

    यह सोचना ग़लत है कि तम ही घनीभूत हुआ है

    क्षीण-सी ही सही

    प्रकाश की किरण अवश्य है

    यह कहना ठीक है

    कि आशारूपी चन्द्रकला से युक्त

    यह 'सिनीवाली' है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 118)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : आरुद्र
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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