बेकारी

bekari

बी. गोपाल रेड्डी

अनकापल्ली में

ऑटोग्राफ पर हस्ताक्षर करते हुए

पूछा मैंने

“आप क्या पढ़ती हैं?”

वह एम० ए०, बी० एड० पास कर गई थी

नौकरी तो मिलती नहीं,

उसने कहा “मैं शोध कर रही हूँ,

आप तो भाषणों में कहा करते हैं,

पर बेकारी की राक्षसी को मार नहीं पाए हैं”

एम० ए०, बी० एड० ने गंभीरता से कहा,

मैं रह गया मूक।

विशाखा लौटकर

दिया बुझाकर

लेटने पर

याद आई हैं उसकी बातें।

देश की बेकारी की समस्या

पढ़े-लिखों की बेकारी की समस्या

पढ़ी-लिखी लड़कियों की बेकारी की समस्या

कितनी भीषण-दारुण समस्याएँ

हर दिन तीव्रतर होती जा रही हैं

एक ओर पढ़े-लिखों की संख्या बढ़ रही है

और नौकरी के मिलने से संकट झेल रहे हैं।

जाने यह शिक्षा

कितने कौशल का फल है

कितने आशा-बीजों की फसल है,

कितनी साधना का परिणाम है,

एम० ए० पास हुई, बी० एड० पास हुई

सभी प्रसन्न हुए

माता-पिता के साथ सारे परिवार ने

आनंद के साथ

उसका किया अभिनंदन।

जितनी वह पढ़ती गई

उतनी ही शादी की संभावना घटती गई

नौकरी के मिलने से

वह निराश हो गई,

उस निराशा की गठरी की बातें ही निकलीं

उसके मुँह से

माता-पिता के सपनों के

मिट जाने की बात कही उसने।

उसकी उजली मुसकानों के पर्दे में

छिपे हुए हैं काले सत्य,

आशा की लतिकाओं में

नहीं हैं सुंदर कलियाँ

कल्पना-नंदन वन में नहीं हैं

पिक-सारिकाओं के कल-कूजन

यौवन-पूर्णिमा में विहार कर रही है

अमा-निशा का अंधकार

उगते प्यार पर बादल छाए

पल्लवित कामनाओं में कीट घुस गए

जीवन में स्वरों से अपस्वर ही

अधिक सुनाई पड़ते हैं

कल्पना-नयन को

उपवनों की अपेक्षा

वीराने ही

अधिक दिखाई पड़ रहे हैं।

नेताओं के लंबे भाषणों से सुलझने वाली समस्या नहीं है

चुनावों के आश्वासनों की सुनहली बौछारों से

ऐन्द्रजालिक के मंत्रदंड से

हल होने वाली बात नहीं है।

वह मेरा भाषण सुनने आई थी

लोकतंत्र की विजय-दुंदुभी उसने सुन ली।

पता नहीं

कौन-सी किरण-रश्मियाँ

उसके उर का तिमिर चीर सकती हैं

कौन-सी अमृत की बूँदें सूखी रसना को

गीला कर सकती हैं?

कौन-सी सांत्वना की बातें

उसे प्रोत्साहन दे सकती हैं?

निशीथ के नीख-अश्रुओं को पोंछ सकती हैं।

उसकी अधर-लताओं में क्या

आशा-स्मित सुमन खिलेंगे?

मन के मानसरोवर में क्या धवल मराल विहरेंगे?

क्या यौवन-स्वप्न चित्रों में

घुटनों के बल रेंगते

शिशु दीखेंगे?

तारुण्य की छटा से उसका मुख दीप रहा है

पर मुख-यवनिका के पीछे

समस्या-वल्मीक छिपे हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : लोकालोक (पृष्ठ 106)
  • रचनाकार : बी. गोपाल रेड्डी
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1989
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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