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तलाश ख़त्म नहीं होती

talash khatm nahin hoti

नेहा नरूका

अन्य

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नेहा नरूका

तलाश ख़त्म नहीं होती

नेहा नरूका

और अधिकनेहा नरूका

    मैं दरख़्तों, दीवारों और रास्तों पर

    सालों-साल तलाश करती रही उस एक शख़्स को

    जो मेरे जैसा हो

    जिसे मैं टूटकर प्यार कर सकूँ

    थक-हार कर जब लौट आई घर

    तो वह मिला मुझे मेरे ही कमरे के आईने में...

    मैंने कसकर भरना चाहा अपनी बाँहों में उसे

    पागलों की तरह चूमना चाहा उसके जिस्म को हर जगह

    पर एक काँच की दीवार हमारे बीच तनकर खड़ी हो गई।

    लाख कोशिशों के बाद मैं कभी नहीं मिल पाई उससे और वो मुझसे

    मेरे कमरे में अब काँच ही काँच बिखरा है

    जिनमें बैठे हैं उस जैसे कई शख़्स

    वे अक्सर मेरे पैरों और हाथों से ख़ून निकाल देते हैं

    और अपने भी...

    झूठे हैं वे जो कहते हैं :

    'आईना कभी झूठ नहीं बोलता'

    स्रोत :
    • रचनाकार : नेहा नरूका
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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