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तभी बुलाती है कविता

tabhi bulati hai kavita

आलोक कुमार मिश्रा

अन्य

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आलोक कुमार मिश्रा

तभी बुलाती है कविता

आलोक कुमार मिश्रा

और अधिकआलोक कुमार मिश्रा

    तभी बुलाती है कवि को कविता

    जब वह घुटनों तक सना

    मिट्टी में रोप रहा होता है धान

    या जब कमर भर पानी में रगड़ रहा होता है

    भैंस की पीठ

    याकि फिर किताबों में डूब उतरा रहा होता है

    पकड़कर बच्चों का हाथ

    कोल्हार की ओर बढ़ रहा होता है

    जब वह लादे सर पर मन भर गन्ना

    या पीछे साइकिल पर बिठाए पत्नी को

    जा रहा होता है हाट-बाज़ार

    या फिर बड़ेरी पर चढ़ाने को थामे खड़ा होता है छप्पर

    दूर आम की फुनगी या उसके भी पार से

    बुलाने लगती है उसे कविता

    आनन-फानन में धोकर हाथ

    ढूँढ काग़ज़-क़लम ज्यों बढ़ता है

    वह उसकी ओर

    हो जाती है रफ़ू-चक्कर

    याकि छूमंतर

    फिर भी उतारता है उसको

    दसांश या शतांश जितना भी बच पाती है

    मन के पटल पर उसकी आवाज़

    जानता है वह

    आएगी फिर ढूँढ़ते हुए वह उसे

    और रह जाएगा वह फिर हाथ लभेड़े ताकता उसे

    सुदूर आकाश में हँसेगी और छेड़ेगी कविता

    कह कहकर उसे—

    'क्या हुआ कवि!

    कुछ लिखोगे नहीं'

    फिर छिटके हुए शब्दों से

    कवि लिखेगा कविता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आलोक कुमार मिश्रा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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