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स्वरों को पार करते काल के घनत्व को चीर कर

swron ko par karte kal ke ghanatw ko cheer kar

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

अन्य

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दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

स्वरों को पार करते काल के घनत्व को चीर कर

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

और अधिकदिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

    स्वरों को पार करते,

    काल के धनत्व को चीर कर

    कालातीत बनते हुए

    निर्वेद में लीन होती हुई तानों में गूँजते,

    घने अंधकार में चमकने वाले

    क्षणों की राह

    वेदना की गति,

    समस्त ब्रह्मांड में ध्वनित होकर

    दिशाओं को भेद कर

    फैलने वाला सर्वव्यापी आवेग

    'चल पड़ो' 'चल पड़ो'—

    संवेदना की नोक पर स्थिर, थमी

    प्राणों की यह भ्रमरी

    दिग्भ्रमित विचारों के भँवर में फँसी है

    दिक् और काल के कंपन

    रक्त-प्रवाह में से लहरते हैं

    गति के सात-सात क्षितिज नापने वाली यह पुकार

    ‘चल पड़ो’ ‘चल पड़ो’।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 67)
    • रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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