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स्वरशून्य खोखलेपन में

swarshunya khokhlepan mein

अनुवाद : तुषार धवल

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

अन्य

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दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

स्वरशून्य खोखलेपन में

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

और अधिकदिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

    स्वरशून्य खोखलेपन में मेरी ही चीख गिरी मुझ पर

    यह सबूत था कि ब्रह्मांड की भी सीमाएँ हैं

    आज अकारण उदास है मन उचित होता कि

    तुमसे यह बिछोह कुछ और ही याद दिलाता मुझे।

    गैस लाइट की रोशनी में सड़क पर ख़ुद अपने पीछे

    चलते हुए भी मैं उसी के साथ चल रहा था तब अचानक

    याद आया मुझे। क्षण भर को पेड़ भी भयानक लगे

    कोई कैसे ख़त्म कर सकता था अकारण इस दिशाहीन यात्रा को?

    ट्राम की पटरियों पर उस वक़्त सिर्फ़ लोग ही चला करते हैं...

    ख़ुद को छेड़ते हुए...पेड़ों की शाखाओं से होता हुआ

    पसर जाता है बिजली का प्रकाश। सम्बद्ध अवकाश

    तैरता है मन की सतह पर जब पैर पड़ रहे हों भिन्न-भिन्न स्मृतियों पर

    मैं सचमुच स्मृतियों के मध्य तक चलता चला गया हूँ

    दो शब्दों के बीच की जगह में... शांति में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैजिक मुहल्ला खंड एक (पृष्ठ 50)
    • रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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