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सूतक की पुतली

sutak ki putli

अम्बर पांडेय

अन्य

अन्य

अम्बर पांडेय

सूतक की पुतली

अम्बर पांडेय

और अधिकअम्बर पांडेय

    अगरबत्ती मत जलाना तुम

    मेरे शव के निकट। धूम से

    मस्तिष्क में ब्रह्मकीट है

    वह ‘भन-भन’ कर खाने लगता

    है खोपड़ी की हड्डी अंदर।

    बहनों की बाट जोहते शव

    यदि रखा रहे तो चंदन घिस

    माथे करतलों पर लगाना।

    तब चंदन की वह मुठिया जो

    शव के लिए थी वह अपवित्र

    है उसे मेरे शव की नाक

    के निकट रख देना। मोह मत

    करना। जाने देना। मिट्टी

    का दीप जलाना। जाने के

    बाद घूरे पर डाल आना।

    जब तक प्राण हो तब तक चाम-

    हाड़ों की यह पुतली पावन

    होती है। छू नहाना नहीं पड़ता।

    प्राण निकलते ही यह शरीर

    अति घृण्य हो जाता है। प्रिय

    जिसका हो वह लिपट-लिपट कर

    रोता है। दूसरे देहरी

    पार मल-मल कर नहाते हैं।

    पत्थर पर पछीट-पछीट कर

    वस्त्र धोते हैं। यही रीति

    है। इसका पालन तुम करना।

    तीसरे दिन अस्थि-संचय को

    जब घर के पुरुष भेजना

    ठंडा जल भेजना। जिस भूमि

    पर मुझे दाघ दिया गया है

    उसमें बहुत ताप है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अम्बर पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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