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सूरज की वापसी

suraj ki vapsi

रमेश प्रजापति

अन्य

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रमेश प्रजापति

सूरज की वापसी

रमेश प्रजापति

और अधिकरमेश प्रजापति

    सूरज ने दस्तक दी उषा के किवाड़ों पर

    जीवन की डगर पर अँधेरा एक गुफा

    जिस पर रखी समय की शिला से टकराकर

    अँधेरे के मुँह पर बैठ जाता है सूरज

    ये डर है उसका

    या फिर इस अँधकार में

    भटकने की आदी हों गई उसकी आँखें

    दिन बहुत छोटे हों गएँ

    शैतान की आँत-सा बढ़ता जा रहा अँधेरा

    रात की गुफा में उनींदी पड़ी है उषा

    धुँधला गएँ नाउम्मीदी के सब रंग

    आकाश की नीरवता में ठिुठुर रहा चाँद

    अँधेरे के अनुयाई बेख़ौफ़ बजा रहे नगाड़ा

    उसको उम्मीद है कि लंबी यात्रा पर निकला सूरज

    एक दिन ज़रूर वापस आएगा अँधेरे की छाती पर मूँग दलने

    निरंतर क्षितिज को घूर रही हैं उसकी रक्तिम आँखें

    कोहरे की चादर में लिपटे

    धरती के किसी घूसर कोने में आग ताप रहा है सूरज।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रमेश प्रजापति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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