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सूर्यास्त

suryast

नीलाभ अश्क

नीलाभ अश्क

सूर्यास्त

नीलाभ अश्क

कुहरे के पार कभी कुछ था—अब नहीं लगता।

अब नहीं लगता कि कभी सुख थे भी।

तुमको अब अपना अस्तित्व ऐसे तनाव में

घिरा हुआ लगता है—जैसे आँखों की पुतलियों

पर किसी ने पोत दिया हो तारकोल।

कुहरे के पार कुछ था भी—अब नहीं लगता।

अब तुम्हें पता है वहाँ केवल एक दुःस्वप्न था।

जिसके बीत जाने की प्रतीक्षा

अब तुम कर रहे हो।

तुमने सोचा था कुहरे को चीर कर अभी

कोई चलता चला आएगा। तुम तक।

लेकिन धूल-भरी आँधी का संगीत तुम्हें

अधिक मोहक लगा था। मल्लाहों की मांसल

पुकारों की तरफ़ तुमने देखा था और

सागर-पक्षियों की ऋतु की प्रतीक्षा की थी।

लेकिन वहाँ कुहरे के पार शायद फेन था।

और तुम्हें पश्चिमी क्षितिज पर कोई सोने

का नगर दिखाई दिया था। या फिर

सुविधाओं के शांत घने जंगल।

तुम्हें सूचना मिली थी कि पश्चिम में

झाड़ियाँ रेगिस्तान पर झुक आई

हैं। और तुम ख़ुश हुए थे। या फिर पाशविक।

कुहरे के पार कभी इस्पात ढलता था।

लेकिन फिर एक दिन उसका सुनहलापन

तुम्हें दिखाई नहीं दिया था। और तुम

समझ गए थे कि उन अँधेरी घाटियों

में सूर्यास्त हो गया है। और शाम ढल

आई है, जैसे शीशे की दीवारें

अँधेरे में पानी से भीग जाएँ। और

एक बेरंग भाव तुम्हारे दिमाग़ पर चढ़ता

चला गया था।

कुहरे के पार कभी लगता था एक सपने

देखने वाली आँख है। लेकिन एक दिन तुम्हें

मालूम हुआ कि वहाँ कुहरे के पार, शतरंज

की गोटें इधर से उधर करता हुआ एक बूढ़ा

मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था। और तुम समझ

गए थे कि कैसे सपनों से भी समझौता हो सकता

है—आँख का।

तुम्हें पहली बार महसूस हुआ था कि आदमी मृत्यु

से पहले भी बार-बार मर सकता है। हर

आत्म-स्वीकृति में।

तुमने कुहरे के पार किसी नरक की कल्पना

की थी। लेकिन तुम्हें वहाँ सिर्फ़ सूखी

ज़मीन और जलहीन चट्टानों के विस्तार मिले थे।

तुमने कहा था, नरक केवल एक है—वह

जिसका निर्माण हम ख़ुद एक-दूसरे

के लिए करते हैं। और तुमने पाया

कि समय ने तुम्हें ग़लत सिद्ध कर दिया था।

तुमने देखा था कि एक ऐसा नरक भी होता

है जिसे हम ख़ुद अपने लिए निर्मित करते हैं।

एक ऐसी दुरभिसंधि की तरह जिसे हम ख़ुद

रचते हैं—अपने विरुद्ध।

तुमने पाया था कि तुम्हारी आँखों में निरंतर

आग के झरने गिर रहे हैं। और तुम्हारी

साँसों में बारूद की गंध है। तुमने समय के विरुद्ध

विद्रोह किया था।

देख लेना, तुमने कहा था, सब कुछ असामयिक

हो जाएगा। समय मेरा हत्यारा सिद्ध होगा।

लेकिन तुम्हें यह नहीं मालूम था कि तुम हमेशा समय

में ही जीवित रहोगे। उसके बाहर तुम्हारा

कोई भी अस्तित्व नहीं होगा।

तुमने समय को पराजित करने के लिए

अपने गिर्द बहुत से संबंध खड़े कर लिए

थे। या फिर संवेदनाओं के सूक्ष्म जाल।

कुहरे के पार कभी कुछ था—

लेकिन तुम्हें अंत तक नहीं पता चला

था कि वहाँ समय था... केवल समय।

या फिर तुम्हारे बनाए वही संबंध। वही जाल।

या तुम्हारा वही एक स्वनिर्मित नरक।

...और तब उस आख़िरी क्षण में तुम कुछ नहीं कर सके थे।

स्रोत :
  • पुस्तक : कुल जमा-1 (पृष्ठ 28)
  • रचनाकार : नीलाभ
  • प्रकाशन : शब्द प्रकाशन
  • संस्करण : 2012

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