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धान के गुच्छे में सूर्योदय

dhan ke guchchhe mein suryoday

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

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मनोरमा बिश्वाल महापात्र

धान के गुच्छे में सूर्योदय

मनोरमा बिश्वाल महापात्र

और अधिकमनोरमा बिश्वाल महापात्र

    इस समय मेरे चारों ओर

    भोर की साँस-साँस

    महक रही भरपूर

    भींगे-भींगे पवन में

    धान के गुच्छे सिर हिला रहे

    सुकुमार ललित रागिनी

    खुल जाती धनखेत में

    नदी के पठार में

    ओस की बूँदों में

    निजन मन में

    दूब भी

    भरी है, पुलकित

    सूर्योदय के पुलक में

    मेघमय पलों को,

    चेतना को

    संगीत विलास में

    भर देता सूर्योदय

    धान के गुच्छे में सूर्योदय।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कभी जीवन कभी मृत्यु (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : मनोरमा बिश्वाल महापात्र
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1994

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