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सुनो मेरी पुत्री

suno meri putri

मेधा झा

अन्य

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मेधा झा

सुनो मेरी पुत्री

मेधा झा

और अधिकमेधा झा

    मृत्यु होते ही दे देना 

    मेरा हर एक अंग 

    जो काम सके किसी के

    और सौपना मुझे 

    विद्युत शव दाह में

    मेरी पुत्री!

    ताकि भस्म हो सके

    मेरा शरीर, मेरे अवगुण

    और सदियों से चली रही

    मुखाग्नि देने की

    जीर्ण-शीर्ण पुरातन परंपरा

    जिसकी वजह से दिया गया

    तुम्हें पुत्रों से, कम महत्व।

    इस मुखाग्नि की प्रतीक्षा ने

    जलाया है तिल-तिलकर 

    कितने विवश माता-पिताओं को

    जो बाध्य हुए सहलाने को

    अपने पुत्र, पुत्रवधू के चरण को

    जीवन के अंतिम प्रहर में।

    तुम जानो 

    कि बना है सबका शरीर 

    उसी पंच तत्व से।

    नहीं किया है भेदभाव

    जब प्रकृति ने

    आह, किसने किया यह षड्यंत्र है?

    पोषित करने के लिए इस सत्ता को

    रची गई है ये सारी परंपराएँ, 

    लिखे गए हैं यह सारे धर्म पुराण

    ताकि एक को मिल सके 

    सारे अधिकार और वैभव

    और दूसरा ले सके स्नेह भी

    मात्र भीख में।

    तुम्हारे आने की प्रक्रिया

    कहाँ भिन्न रही है तेरे भाई से।

    ही मेरे शरीर ने भेदभाव किया

    पोषण में उन नौ महीनों तक

    क्योंकि वह प्रकृति का कार्य क्षेत्र था

    छल की परंपरा शुरू हुई वहाँ से

    जब प्रकृति ने सौंपा तुम्हें

    मानव के हाथों में।

    उठो, सीखो छीनना 

    वो सब, जो तुम्हारा हो

    डँके की चोट पर।

    नहीं, साथ नहीं आएँगे

    वो लोग, जो दबे हैं

    इन मान्यताओं के बोझ से

    और तैयार नहीं हैं लेने को

    बोझ एक नए कर्तव्य का।

    नहीं समझ में आए कुछ

    तो उद्घोष करो युद्ध का

    क्योंकि यह धर्मयुद्ध है।

    जानो कि धर्म वह है

    जो सत्य है, न्याय करता है 

    हर छोटे-बड़े के साथ 

    और करता है सबकी रक्षा।

    देना हो गर आहूति 

    तो हँस कर दो

    उन समस्त परंपराओं का 

    हर जीर्ण शीर्ण मान्यता का

    और संबंधों का

    जिसने अशक्तों के साथ

    हमेशा छल किया है।

    क्योंकि होती है शुरुआत 

    आहूति से ही, हर धर्मयुद्ध की।

    लेकिन तैयार रहो तुम

    लेने को जुआ कर्तव्यों का

    अपने सुदृढ़ कंधों पर।

    इस राह में आएँगी बाधाएँ,

    लहू लूहान होगा तुम्हारा कंधा भी,

    लेकिन भूलो नहीं 

    कि बिना कर्तव्य के

    लिया गया अधिकार 

    अधिकार नहीं अधर्म है।

    चूंकि तुम सशक्त हो

    तो तुम्हें पालन करना है

    धर्म का हर हाल में

    करना है स्थापना मानव धर्म का 

    हर जगह, पुनः इसी काल में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मेधा झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए शैलेंद्र कुमार शुक्ल द्वारा चयनित

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