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सुनो द्रोणाचार्य

suno dronachary

मुसाफ़िर बैठा

अन्य

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मुसाफ़िर बैठा

सुनो द्रोणाचार्य

मुसाफ़िर बैठा

और अधिकमुसाफ़िर बैठा

    सुनो द्रोणाचार्य

    सुनो

    अब लदने को हैं

    दिन तुम्हारे

    छल के

    बल के

    छल बल के

    लंगड़ा ही सही

    लोकतंत्र गया है अब

    जिसमें एकलव्यों के लिए भी

    पर्याप्त ‘स्पेस’ होगा

    मिल सकेगा अब जैसा को तैसा

    अँगूठा के बदले अँगूठा

    और

    हनुमानकूद लगाना लगवाना अर्जुनों का

    कदापि अब आसान होगा

    तब के दैव राज में

    पाखंडी लंगड़ा था न्याय तुम्हारा

    जो बेशक तुम्हारे राग दरबारी से उपजा होगा

    था छल स्वार्थ सना तुम्हरा गुरु धर्म

    पर अब गया लद दिनदहाड़े हकमारी का

    वो पुरा ख़्याल वो पुरा ज़माना

    अब के लोकतंत्र में तर्कयुग में

    उघड़ रहा है तेरा

    छलत्कारों हत्कर्मों हरमजदगियों का

    वो कच्चा चिट्ठा

    जो साफ शफ़्फ़ाफ़ बेदाग़ बनकर

    अब तक अक्षुण्ण खड़ा था

    तुम्हारे द्वारा सताए गयों के

    अधिकार अचेतन होने की बाबत

    डरो चेतो या कुछ करो द्रोण

    कि बाबा साहेब के सूत्रा संदेश—

    पढ़ो संगठित बनो संघर्ष करो

    की अधिकार पट्टी पढ़ गुन कर

    तुम्हारे सामने

    इनक़्लाबी प्रत्याक्रमण युयुत्सु

    भीमकाय जत्था खड़ा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुसाफ़िर बैठा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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