सुखी आदमी

sukhi adami

शचींद्र आर्य

शचींद्र आर्य

सुखी आदमी

शचींद्र आर्य

मेरे मन में हमेशा से एक सुखी आदमी की धुँधली-सी तस्वीर रही है।

कभी वह पिता के चेहरे से मिल जाती, कभी उसमें कोई शक्ल नहीं होती,

बस नाक, मुँह, कान और होंठ होते।

उस तस्वीर मिल जाने और उसके खो जाने के बावजूद

पहला सवाल यही था, यह सुख क्या है?

हम सब अपने लिए अलग-अलग सुखों की कल्पना करते हैं।

कभी लगता, अपनी कल्पना में सब अकेले होकर सुख ढूँढ़ लेते होंगे।

यह नींद सबका एकांत और सुख रच सकती थी,

जिसकी संभावना अब बेकार लगती है।

मैं तो बस ऐसे ही ख़याल में खोया किसी ख़ाली कमरे में

मेज़ के सामने तिरछा बैठे हुए

वक़्त और मेहनत लगाकर लिखी गई किताबों को पढ़ लेना चाहता हूँ।

उन्हें भी पढ़ पाया, तब भी इसके बाद ही बता पाऊँगा,

जिसे अपना एकांत कह रहा था, वहाँ कितना सुखी था!

स्रोत :
  • रचनाकार : शचींद्र आर्य
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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