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सुख को भी दुख होता है

sukh ko bhi dukh hota hai

श्रुति कुशवाहा

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श्रुति कुशवाहा

सुख को भी दुख होता है

श्रुति कुशवाहा

और अधिकश्रुति कुशवाहा

    मैं सुख की कविता लिखना चाहती थी

    सबसे पहले नींद की गोली खाई

    फिर सारे रंग सारी ख़ुशबुएँ समेटी

    रेगुलेटर से मौसमों को सँवारा

    हल्की बारिश की, रूमानी अँधेरा

    लैवेंडर परफ्यूम छिड़का

    सारेगामा पर कुमार गंधर्व गा उठे

    साँवरे आई जइयो, जमुना किनारे मेरो गाँव

    और मैं जमुना खींच लाई अपने घर के आगे

    ख़ूब सारे पेड़ खूब पंछी

    रंग बिरंगी तितलियाँ

    कुछ फूल पर कुछ कलाई पर

    फिर उठा लिये सबसे प्रेम वाले दिन

    दो चाय के प्याले और हज़ारों बातें

    कई किलोमीटर लंबी ख़ामोशी

    मान मनुहार ताने उलाहने

    बच्चों की खिल-खिलाहटें सुन

    कविता और सुख से भर गई

    सब सुख में पगा था

    सब सुख में डूबा

    मैंने इस सुख को मोड़कर सहेज लिया

    कि अचानक सुख ने उचककर बाहर झाँका

    फिर जाने क्या हुआ

    सुख फफककर रो पड़ा

    मैंने बहुत कोशिश की

    लेकिन सुख तबसे लगातार रो रहा है

    मैं एक बात जान पाई हूँ

    सुख को भी दुख होता है

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रुति कुशवाहा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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