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स्थान की रिक्तता के बाद

sthaan ki riktata ke baad

मनीष यादव

अन्य

अन्य

मनीष यादव

स्थान की रिक्तता के बाद

मनीष यादव

स्थान की रिक्तता के बाद

भाव के ख़ालीपन से जूझती स्त्री

क्या चाहती होगी?

“संघर्ष” को किसी मटके की तरह

अपनी कमर से अड़काए हुए चली आती होगी

खेत की पगडंडियों को पकड़े

गाँव के चौराहे पर पहुँचते ही वहाँ के

रिवाज़नुमा चौखट के सामने बैठी औरतों का झुँड

आहिस्ते से कहता है—

“कुलक्षणी, खा गई अपने पति को

विवाह के दूसरे ही दिन

पति के आकस्मिक मृत्यु की वजह से,

उस नई नवेली (विधवा) औरत को

कलंकित, कुलक्षणी, अभागन, डायन

और जाने कितनी उपाधि दी गई लोगों के द्वारा

तब जाके;

गाँव के अंत में पीपल के पेड़ के पास वाली

पहाड़ी के ऊपर से वह अकेली औरत

अपने स्वाभिमान की सबसे ऊँची छलाँग लगाकर

ऐसे कूदी,

जैसे मध्य रात्रि में अचानक नींद टूट जाने पर

अकेलेपन में कूद जाता है

प्रेमिका से बिछड़ा एक युवा प्रेमी।

स्रोत :
  • रचनाकार : मनीष यादव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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