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स्पष्टीकरण

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कुणाल

अन्य

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कुणाल

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कुणाल

और अधिककुणाल

    भीतर ही भीतर

    सुलगता है ज्वालामुखी

    खेत और कारख़ानों के केंद्र में।

    भीतर ही भीतर

    सुलगता है ज्वालामुखी

    प्रचंड चीत्कार के साथ वह फटेगा

    अजेय वेग से

    आग और गर्म हवा बढ़ेगी आगे और आगे

    मानव मुक्ति के आख़िरी अवरोध तक।

    भीतर ही भीतर

    सुलगता है ज्वालामुखी

    विस्फोट के उपरांत

    सुबह के लिए सूर्य की अपेक्षा

    अब निरर्थक हो जाएगी

    आदमी के पाँव जमेंगे धरती पर

    सर आकाश तक पहुँचेगा।

    आदमी के अस्तित्व पर

    प्रत्येक आक्रमण के बाद

    सुलगने की प्रक्रिया और तेज़ होती है

    गनगनाहट और मुखर होती है

    नज़दीक होती जाती है

    सहिष्णुता की सीमा

    गुस्से की चरम स्थिति

    विस्फोट के क्षण।

    भीतर ही भीतर.

    सुलगता है ज्वालामुखी

    सो अग्निस्नान की तैयारी में

    जुटना चाहिए मीत

    उष्णता का अनुभव करते हुए

    उत्साह के वास्तविक स्वर की प्रतीक्षा में

    संभाव्य विस्फोट की प्रतीक्षा में

    अग्निस्नान की तैयारी में

    जुटना चाहिए मीत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिली कविताएँ (पृष्ठ 45)
    • संपादक : ज्ञानरंजन, कमलाप्रसाद
    • रचनाकार : कुणाल
    • प्रकाशन : पहल प्रकाशन

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