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स्पर्श मात्र की दूरी

sparsh maatr ki duri

अपूर्वा श्रीवास्तव

अन्य

अन्य

अपूर्वा श्रीवास्तव

स्पर्श मात्र की दूरी

अपूर्वा श्रीवास्तव

और अधिकअपूर्वा श्रीवास्तव

    प्लेटफ़ार्म से प्लेटफ़ार्म तक के सफ़र में

    जब-जब मुड़े तुम मेरी ओर

    फैली कितनी हीं आकाशगंगाएँ कपोल पर

    भौहों के मध्य से होती हुई टकराती हुई अधरों से

    गिरती रही उलकाएँ

    गलई के तीरे

    जहाँ पिघलती रही प्रतिक्षाओं की ताप

    अनंत हो उठे दो पिंडों के संसर्ग से

    यक़ीनन

    तुम्हारे हाथ थामते ही

    हो सकता है कोई भी शहर सबसे ख़ूबसूरत

    बादल हो सकता है पानी और पानी इंद्रधनुष

    फिसल सकता है चाँद तुम्हारी हथेली पर

    या सुस्ता सकता है कोई तारा मेरी हथेली पर

    प्लेटफ़ार्म नंबर एक की वह कुर्सी

    जहाँ साथ बैठे थे हम अंतिम बार

    थामे हुए भारी नयन और विदा का भार

    प्रतिक्षारत रहेगी—बिसूरती हुई

    उसे मालूम जो है

    स्टेशन पर

    ट्रेनों के छूटने से अधिक भयावह है

    दो हाथों का छूटना

    चुंबन के समय बराबर

    एक स्पर्श मात्र की दूरी पर हैं हम

    बहुत-बहुत दूर

    बहुत-बहुत पास

    प्रतीक्षा पर नहीं पड़ता पूर्णविराम

    औचक ही सुनाई पड़ता है कोई स्वर अपनी पुनरावृत्ति में बार-बार

    जैसे चाहता हो लौटना

    बारंबार

    तुम्हारे हीं पास।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अपूर्वा श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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