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सोलह बरस के लड़के की कविताएँ

solah baras ke laDke ki kawitayen

कुशाग्र अद्वैत

कुशाग्र अद्वैत

सोलह बरस के लड़के की कविताएँ

कुशाग्र अद्वैत

एक सोलह बरस के लड़के की कविताओं के बिंब

इतने कुरूप क्यों हैं?

यहाँ

मगरमच्छ क्यों हैं,

रंग-बिरंगी मछलियाँ क्यों नहीं?

कोई पूछता भी नहीं

सोलह बरस के कवि से

कि यहाँ तो सोता होना था

फिर इतनी प्यास क्यों है?

हरदम महकती रहनी थी यह जगह

इत्र होते या कुछ और

फिर, चिमनियों का-सा धुआँ क्यों है?

रंग-बिरंगी तितलियाँ क्यों नहीं?

सोलह बरस के लड़के को तो

शुतुरमुर्ग़ी चुंबन में डूब जाना था,

या कोई अश्लील किताब ले

बिस्तर में ही लुका जाना था,

उसकी पथरीली आँखों को

किसी की सजीली आँखों के आगे,

सहसा ही झुक जाना था,

दो क़दम आगे आना था

तीन क़दम पीछे,

फिर असमंजस में

बीच में ही कहीं रुक जाना था।

उसकी कविताओं के माध्यम से

ईश्वर को वसंत के आगमन की

आधिकारिक घोषणा करनी थी।

उसकी कविताओं में हुई

नुक़्तों की ग़लतियाँ

आलोचकों को

आकाश से छिटके तारों-सी लगनी थी।

उसकी कविताओं के आकाश को नीला

और धरती को असामान्य रूप से हरा होना था।

उसकी कविताओं में

मधुमक्खियों को छत्ता लगाना था,

कोयलों को घोंसला बनाना था।

उसकी कविताओं के आस-पास

होना चाहिए था―

एक अद्भुत प्रकाश

किसी लैंपपोस्ट की तरह

कीट-पतंगों को जहाँ डेरा जमाना था।

उसकी कविताओं में

उपासना,

विपासना,

सपना

लड़कियों के नाम होने थे।

और, वासना?

वासना―किसी ऋतु का!

लेकिन,

उसकी कविताओं के बिंब

इतने कुरूप हैं

और

कोई पूछता भी नहीं

कि यहाँ तो सोता होना था

फिर इतनी प्यास क्यों है?

स्रोत :
  • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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