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शराफ़त के पुल

sharafat ke pul

अनुवाद : देवी नागरानी

अतिया दाऊद

अन्य

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अतिया दाऊद

शराफ़त के पुल

अतिया दाऊद

और अधिकअतिया दाऊद

    मैं सारा जीवन

    औरों की बनाई शराफ़त के पुल

    पर चली हूँ

    पिता की पगड़ी, भाई की टोपी की ख़ातिर

    मैंने हर इक साँस उनकी मर्ज़ी से ली है

    जब बागडोर मेरे शौहर के हाथ में दी गई

    तब मैं चाबी वाले खिलौने की तरह

    उसके इशारे पर हँसी और रोई हूँ

    बचपन में, जीन-भूतों से डरा करती थी

    अब तलाक़ से डरती हूँ

    इज़्ज़त और शराफ़त की मर्यादा को

    मैंने लिबास समझकर ओढ़ा है

    जब वह तलाक़ नाम लेकर डराता है, तो

    ख़ुद को मायूसी के कफ़न में लिपटा हुआ पाती हूँ

    अब्बा ने दहेज में मुझे क़ीमती जेवर दिया था

    सौत की तरह उसका हर लफ्ज़

    हृदय पर मूँग दलता है

    मेरे ज़हन का गला घोंटकर, जज़्बों के ख़ून में से

    क़लम डुबाकर भरोसे को गढ़ा गया है

    मेरे इंसान होने, या होने की बहस पर

    आधा इंसान जानते हुए, क़ानून लिखा गया है

    मेरी सोचों, ख़्वाहिशों, जज़्बों और उमंगों की

    खोपड़ियों से, समाज की तामीर की गई है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक थका हुआ सच (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार : अतिया दाऊद
    • प्रकाशन : श्री प्रकाशन, दिल्ली
    • संस्करण : 2017

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