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सीता

seeta

सुखपाल

अन्य

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सुखपाल

सीता

सुखपाल

और अधिकसुखपाल

    सीता की समझ में नहीं रहा

    चाहे यह दशरथ का मान हो

    जनक का वचन हो

    राम की मर्यादा हो

    लक्ष्मण की रेखा हो

    रावण का अहंकार हो

    या किसी धोबी का संशय

    हर बार उसी को क्यों झेलना पड़ता है?

    कभी सीता को मोह आता है रावण के प्रति

    एक वही था जिसे कोई चिंता नहीं थी

    कि सीता की देह पवित्र थी या अपवित्र?

    कभी असमंजस में जाती है सीता

    उसे बचाने आया राम कौन था

    उसका पति या अयोध्या नरेश?

    अयोध्या का राजा भी कौन था

    रामचंद्र या उसका धोबी?

    यदि राम विश्वास करते कि सीता थी दोष-रहित

    तो स्वयं भी उसके साथ जंगल क्यों गए

    मात्र पिता के आदेश पर ही वनवास क्यों

    पत्नी का साथ देने के लिए क्यों नहीं?

    कभी-कभी उसके मन में आता है

    राम उसकी कोख से जन्मे होते तो

    छाती के वैराग्य को

    वक्षस्थल के दूध में उतारकर

    राम के भीतर उँडेल देती

    उसी क्षण वह जान नहीं पाती

    कि उसकी कोख से जन्मे पुत्र

    उसका स्तनपान करके

    क्यों रामचंद्र पर ही सवार होना चाहते हैं

    उन बेटों को समझ क्यों नहीं

    कि दौड़ते घोड़े पर सवार तो हुआ जा सकता है

    लेकिन घायल हुए बिना उतरा नहीं जा सकता

    कि मर्यादा के घोड़े पर

    चालक सहित बैठा मनुष्य

    शक्तिशाली तो है, स्वतंत्र नहीं होता

    सीता बहुत सोचती है

    लेकिन, समझ में नहीं आता

    नर क्यों

    सशक्त होने की ग़ुलामी पालता है?

    ऐसे में सीता को लगता है

    कि वह कितनी स्वतंत्र है..

    —वह मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं है

    कि संस्कारों के आर-पार देख सकती है

    धर्मगुरु के बिना सोच सकती है

    —वह सशक्त है, चूँकि उसे शक्ति की चाह नहीं

    एक वही तो है

    जो सचमुच स्वतंत्र है...

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 317)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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