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सीरासार चौक

sirasar chauk

विजय सिंह

अन्य

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विजय सिंह

सीरासार चौक

विजय सिंह

और अधिकविजय सिंह

    (जगदलपुर का ऐतिहासिक चौक)

    एक कवि का संसार सीरासार चौक

    से शुरू होता है

    जिसे शहर के लोग नहीं जानते

    जानते हैं तो सीरासार चौक को

    जो शहर में है

    यहीं से शुरू होती है बस्तर की किंवदंतियाँ

    और यहीं से शुरू होती है सुबह

    आरती और पूजा की घंटियाँ

    हज़ारों लोग यहीं से गुजरते हैं

    मनौती माँगते, माथा टेकते और यहीं से गुजरा था

    सन् 66 में बस्तर का ख़ूनी इतिहास

    जिसके दुख: में आज भी

    सीरासार चौक में खड़े रथ चुप-चुप रोते हैं

    जिन्हें सीरासार चौक के अलावा

    शहर का और कोई देख नहीं पाता

    शहर के लोग देखते हैं सिर्फ़

    सीरासार चौक में खड़े गुपचुप चाट ठेलों को

    जहाँ शहर की संभ्रांत महिलाएँ—लड़कियाँ

    गुपचुप चाट खाकर खिलखिलाती-हँसती रहती हैं

    वैसे मेरे शहर के कवियों की कविता में भी

    सीरासार चौक नहीं आता

    लेकिन, मुझे ख़ुशी इस बात की है कि

    इन सबके बावजूद

    सीरासार चौक कभी उदास नहीं होता...

    ...

    सीरासार—सिरहा शब्द से बना है

    सिरहा हल्बी का शब्द है! सिरहा अर्थात झाड़-फूक करने वाला या पूजा करने वाला...

    राजवंश के समय और आज भी इसी चौक से दशहरा-गोंच और अन्य पर्व की पूजा-अर्चना के बाद के बाद बस्तर में अन्य कार्य संपन्न होते हैं!

    बस्तर का विश्व प्रसिध्द दशहरा जो पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है वह भी यहीं से शुरू होता है...

    जगदलपुर के राजमहल के पास का दृश्य

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजय सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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