सिकुड़ती सरहद

sikuDti sarhad

जुमई खाँ 'आजाद'

जुमई खाँ 'आजाद'

सिकुड़ती सरहद

जुमई खाँ 'आजाद'

बूड़ै मजधरवा माँ नइया मोरि खेवइया के बिना।

भाँग खाय के माँझी सोवै नाव भंवर माँ नाचै।

सब के नशा चड़ी कुरसी के के पतवार सवाचै।

पनिया भरिगा मोरि नेवरिया उलचइया के बिना।

बूड़ै मजधरवा माँ नइया मोरि खेवइया के बिना॥

एक रहेन वै बूढ़ पुरनिया जौन लगायेन बगिया।

लरिका येस चपरहा भयेन कि बाँधि पायेन टटिया।

देखा चरिगै फुलवरिया रखवइया के बिना।

बूड़ै मजधरवा माँ नइया मोरि खेवइया के बिना॥

प्रजातंत्र के यहि बिरवन माँ जब-जब लाग टिकोरा।

केहू ना पाइस चटनिव भर का केउ तोरिस भरि झोरा।

मोरौ हींसा नाहीं लागै बटवइया के बिना।

बूड़ै मजधरवा माँ नइया मोरि खेवइया के बिना॥

मानचित्र माँ सरहद सिकुरी नई बनी अब रेखा।

ब्रह्मपुत्र मानसरोवर कहाँ गवा अब देखा।

लुटिगै शंकर कै दुअरिया तकवइया के बिना।

बूड़ै मजधरवा माँ नइया मोरि खेवइया के बिना॥

ककरीली, पथरीली भुइयाँ महतारिन तो आटै।

यहि कै दशा देखि के भइया रहि-रहि छतिया फाटै।

डाँका परिगा मोरि नगरिया घर देखइया के बिना।

बूड़ै मजधरवा माँ नइया मोरि खेवइया के बिना॥

स्रोत :
  • रचनाकार : जुमई खाँ 'आजाद'
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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