Font by Mehr Nastaliq Web

शुतुरमुर्ग़

shuturmurgh

शाम्भवी तिवारी

अन्य

अन्य

शाम्भवी तिवारी

शुतुरमुर्ग़

शाम्भवी तिवारी

और अधिकशाम्भवी तिवारी

    सृजन की अंतिम संध्या में

    संसार की पहली स्त्री ने आकाश की ओर उठाए हाथ

    और रचने लगी बालू से बादलों का एक विशाल घरौंदा

    जो ढह गया हवा के एक थपेड़े से उसके गीले सिर पर

    छोड़कर उसके अप्रतिम मुख के स्थान पर

    गीली रेत में गढ़ी एक हल्की रूपरेखा।

    समंदर से पहली बार भू पर निकले केंचुओं ने

    बींध डाली स्त्री की योनि

    और छेद दिए उसके अंडकोष

    जिससे उपजे साँपों ने झोंक दीं अपनी जीभें

    अपनी जननी के मुख की मरीचिका में।

    उनके फुंफकारते विष की गर्मी से

    काँच हो गया स्त्री का अस्तित्व

    और पेड़ों से उल्टे लटके चमगादड़ों ने

    उस विभीषिका को शुतुरमुर्ग़ की संज्ञा दी।

    शुतुरमुर्ग-सी स्त्रियों के काँच से अस्तित्व पर

    आकर टिका दीं अन्य प्राणियों ने अपनी आँखें।

    उसके भीतर देखने के अबूझ प्रयास में

    चौंधिया गईं उनकी अनंत जिज्ञासु आँखें

    और उसके अस्तित्व से एकात्म होने को

    बार-बार टकराए उससे उनके कोटि आकुल शरीर।

    लहूलुहान उँगलियों से काँच को कुरेदती

    उनकी भीगी हथेलियों में

    लिपटी रह गई केवल रेत

    और संसार की पहली स्त्री के अस्तित्व की खोज

    अब तक खींच रही है

    केंचुओं, सांपों और चमगादड़ों को—

    बादलों और समुद्र तटों की ओर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाम्भवी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए