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शुभकामनाएँ, मेरे साथी वर्ष 2000 पर

shubhkamnayen, mere sathi warsh 2000 par

कँवल भारती

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कँवल भारती

शुभकामनाएँ, मेरे साथी वर्ष 2000 पर

कँवल भारती

और अधिककँवल भारती

    बस बारह तीलियों का एक चक्र

    और पूरा होगा

    और हम भारत के लोग

    करोड़ों निरक्षरों-नंगे-भूखों

    और सामंती अवशेषों को साथ लेकर

    इक्कीसवीं सदी में चले जाएँगे।

    हम कितने महान हैं

    कि हमने मरने नहीं दी

    अपनी सामंती संस्कृति

    इस उत्तर आधुनिक वैश्वीकरण की व्यवस्था में भी।

    इसलिए स्वागत करें, नव वर्ष का

    जश्न मनाएँ

    डिस्कों में थिरकें पॉप की धुन पर

    आतिशबाज़ियों से रंगीन कर दें आसमान को

    शैंपेन की बोतल खोलें, और

    टकराएँ शराब के जाम

    उन शासकों के नाम

    जिन्होंने वर्ण-व्यवस्था को जीवित रखा,

    जिसके बिना संभव ही नहीं है

    हमारा विकास, हमारी समृद्धि और हमारी सत्ता।

    सुन रहे हो

    नंगे-भूखे-निरक्षर समाज के जन

    कि तुम क्यों हो अविकसित?

    तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखता

    नव वर्ष, और नई सदी।

    क्योंकि तुम अंगारा नहीं बन सकते।

    मूर्खों के झुंड, उठो!

    अब भी बन सकते हो तुम अंगारा

    और इक्कीसवीं सदी को

    बना सकते हो अपनी सदी...

    शुभकामनाएँ, मेरे साथी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : दलित निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 210)
    • संपादक : कँवल भारती
    • रचनाकार : कँवल भारती
    • प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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