Font by Mehr Nastaliq Web

शिष्टाचार

shishtachar

अनुवाद : राम जी तिवारी

बा. भ. बोरकर

अन्य

अन्य

बा. भ. बोरकर

शिष्टाचार

बा. भ. बोरकर

और अधिकबा. भ. बोरकर

    रहने दो दर्पण मुझको तो

    अपना पनघट ही है भाता

    बिंबित जिसमें सूर्य बिंब-सा

    मेरा भाल-तिलक दिख जाता।

    वेणी का शृंगार करो मत

    देख रहा पथ प्रीतम मेरा

    लंबी मृदुल उँगलियों से निज

    वह बाँधेगा कंतुल मेरा।

    लेकर टटके फूल रंगीले

    सोन सुरंगी, लाल अबोली

    गूँथेगा मेरी वेणी में

    पुष्पों का प्रेमी वनमाली।

    व्यर्थ मुझे चंदन कस्तूरी

    सुखद तरल प्रिय आलिंगन-पल

    प्रीतम के मृदु मधुर अधर में

    खिले गुलाबों का शीतल जल

    साज और शृंगार हटा ले

    कल ही तो मैं आलि, नहाई

    पुष्पित देह फूल से ताज़ा

    यह ऋतु-काल बने फलदायी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ (पृष्ठ 149)
    • रचनाकार : बा.भ.बोरकर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए