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शिशिर की शर्वरी

shishir ki sharwari

विनोद पदरज

अन्य

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विनोद पदरज

शिशिर की शर्वरी

विनोद पदरज

और अधिकविनोद पदरज

    अघाए लोगों को नहीं पता

    कि खाने-पीने-पहनने-ओढ़ने की मज़ेदार ऋतु में

    जीर्ण-शीर्ण कंबल में लिपटी एक बुढ़िया

    सूर्य की प्रतीक्षा करती है रात भर

    सुबह होते होते

    बैठती है वहाँ

    जहाँ सबसे पहले आती है धूप

    फिर तमाम दिन

    जिधर-जिधर धूप

    उधर-उधर बुढ़िया

    अथवा

    जिधर-जिधर बुढ़िया

    उधर-उधर धूप नज़र आती है

    मानो सूर्य ही

    उसकी प्रतीक्षा करता है रात भर

    और उदित होता है

    उसको चौंतरे पर देखकर

    पर एक दिन ऐसा हुआ

    घनी धुँध थी चारों ओर

    सूर्य छपटपटाता रहा

    और उगा जब दूसरे दिन

    व्याकुल बेचैन

    ढूँढ़ता था बुढ़िया को ऐन उसी जगह

    जहाँ कुछ लोगों के बीच

    एक युवक का मुँडा हुआ सिर चमकता था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद पदरज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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