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शारीरिक पीड़ा

sharirik piDa

अम्बर पांडेय

अन्य

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अम्बर पांडेय

शारीरिक पीड़ा

अम्बर पांडेय

और अधिकअम्बर पांडेय

    उसने हाथ ऐसे मस्तक पर रखे थे जैसे कोई पत्थर मार रहा हो या खंभे से उसका मस्तक बार बार टकरा रहा हो। उसकी शारीरिक पीड़ा का अस्पताल जाने से पूर्व बस इतना ही पता चला। उसका दाँत मुँह भींचने से अंदर ही अंदर टूट गया है यह पता ही नहीं चला किसी को भी। शारीरिक पीड़ा हमेशा मृत्यु से छोटी पड़ जाती है। धुली हुई साफ़ और ठंडी सफ़ेद चादर जैसे शव से अधिक समय तक प्रेम नहीं किया जा सकता हालाँकि जीवित मनुष्य शव में बदलते ही प्रेम करने के सर्वथा योग्य हो जाता है। जीवितों से प्रेम करने पर प्रेम घृण्य हो जाता है और शवों से प्रेम करने में शव प्रत्येक क्षण घृण्य होते जाते है, दुर्गंध से भरे, जो प्रेम नहीं करते उनसे पूछो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अम्बर पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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