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शरीर

sharir

नंद चतुर्वेदी

अन्य

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और अधिकनंद चतुर्वेदी

    हमारे घर शरीर की बात कोई नहीं करता था

    करता भी था तो उसे पवित्र रखने के लिए

    जो साधु बाबा माँगने आता था कभी-कभी या हमेशा

    एक ही कड़ी बार-बार गाकर बहुत बार सुनाता था

    ‘क्या तन भाँजणा रे एक दिन माटी में मिल जा’

    तब शरीर अकेला अजनबी की तरह रह जाता

    अपनी सारी तृष्णाओं की अग्नि के साथ

    शरीर से डरने का तर्क था

    उसका क्षरण ‘बिरछ का ज्यों पात टूटे’

    अपने शरीररहित होने और अखिल ब्रह्मांड-व्यापी

    पवित्रता के बारे में

    जो शरीर की अपवित्रता के कारण होती है

    मैं सोचता था ब्राह्मण होने के लिए

    बहुत-सी घटनाएँ थीं

    स्त्रियाँ यम के पास जाती थीं हठीली, अडिग

    मृत्यु ने उठा लिए अपने पतियों के शरीर माँगने

    देहातीत प्रेम का एक बार फिर देहानंद लेने के लिए

    द्रौपदी पाँच-पाँच पतियों को बाँधे रही शरीर से

    अनुद्विग्न, प्रसन्न

    राम कौन-सी सीता के लिए विकल थे

    ‘मृगनयनी’ कहते

    अघोरी शिव भुवन भर में दौड़ते रहे

    पार्वती के ठंडे, गलते अकिंचन शरीर को

    शरीर पर लिए शरीर के लिए

    तथागत ने शरीर के लिए ही तो पूछा था

    तुम भी एक दिन ऐसी ही हो जाओगी, यशोधरा!

    पृथ्वी पर गिरी अचानक, रंगहीन पाँखुरी की तरह

    वासवदत्ता के कामातुर काँपते शरीर से डरे

    तुमने कहा था ‘तब आऊँगा जब तुम्हारे द्वार बंद होंगे’

    तथागत! वासवदत्ता आत्मा नहीं शरीर थी

    तुम्हें उसी क्षण, सारे लोक के सामने

    अपनी युवा कामना के लिए बुलातीं

    किसने गिने कितने कल्प-कल्पांतरों तक

    तुम्हें देखने के लिए प्रतीक्षा-विह्वल रही

    वृषभानुकुमारी, कृष्ण!

    दुनिया जानने के लिए शरीर को ही जानते हैं हम

    देहातीत प्रेतात्माओं के लिए नहीं बनी है पृथ्वी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नंद चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अनुराग चतुर्वेदी द्वारा चयनित

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