शराबी पिता

sharabi pita

रेखा चमोली

रेखा चमोली

शराबी पिता

रेखा चमोली

वे पिता जो हर शाम शराब पीकर घर आते हैं

कभी नहीं जान पाते

अपने बच्चों के स्कूल या दोस्तों की बातें

क्लास में आज क्या हुआ? शाबाशी मिली या डाँट

कैसे खेलते हुए मुड़ गया पैर और लँगड़ाकर आना हुआ घर

उनकी बेटी कभी बता नहीं पाती उनको

एक शाम कैसे डरते-डरते घर लौटी वह

रास्ते भर लगा कोई पीछे है उसके

मुड़ कर देखने का भी हुआ साहस

दीवार पर लगी बच्चों की बनाई नई पेंटिग

आइसक्रीम खाने की छोटी-सी ख़ुशी

रात को गैस का चूल्हा साफ़ करने की बारी पर हुई नोक-झोंक

कुछ भी पता नहीं चलता उन्हें

वे कभी नहीं जान पाते

दुपहर बाद चलने वाली हवाओं से किस क़दर भर जाती है घर में धूल

देर शाम उनकी छत से कितना सुंदर दिखता है आसमान

क्यों लोगों को बच्चों का खेलना ही लगता है शोर

जब बच्चों को होती है घर आने में देर

उनकी माँ कहाँ-कहाँ जाकर ढूँढ़ती है उन्हें?

वे नहीं जान पाते बच्चे उनसे ज़्यादा चाचा या मामा का साथ पसंद करते हैं

उन्हें देख निचुड़ जाता है पत्नी के चेहरे का पानी

बच्चों को बताते हुए कि सब ठीक हो जाएगा जल्दी ही

ख़ुश रहने का दिखावा करते हुए कितनी बेचारी लगती है वह

अचानक किसी दिन किसी के ध्यान दिलाने पर वे पाते हैं

उनके कंधे तक आने लगा है बेटा

बेटी को लोग परखने वाली नज़रों से देखने लगे हैं

वे कहते हैं समय कितनी जल्दी गया

वे पत्नी की तरफ़ देखते हैं

वो अचानक उन्हें बूढ़ी लगने लगती है

वे शिकायत करते हैं, उनके कहने-सुनने में नहीं हैं बच्चे

घर में नहीं है उनकी कोई अहमियत

अपनी उम्र का अधिकांश हिस्सा समझाए जाते हुए, डाँट खाते हुए,

दुत्कारे जाते या दूसरों के सामने आने से कतराते हुए ये पिता

जब किसी दिन ग़ुस्से से झल्लाकर कहते हैं

मेरी मर्ज़ी मैं जैसे चाहे जिऊँ

मैंने क्या बिगाड़ा है किसी का,

तो नहीं जान पाते इस बीच कितना कुछ ख़त्म हो गया होता है

इस बीच वे कितने कम हो गए होते हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : रेखा चमोली
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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