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शहर और उसकी छाया

shahr aur uski chhaya

उत्कर्ष पांडेय

अन्य

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उत्कर्ष पांडेय

शहर और उसकी छाया

उत्कर्ष पांडेय

और अधिकउत्कर्ष पांडेय

    कंक्रीट के जंगल में,

    जहाँ आसमान का हिस्सा भी बिकता है,

    मनुष्य दौड़ता है,

    एक मृग-तृष्णा के पीछे।

    हर गली में, हर मोड़ पर,

    सपनों का व्यापार होता है।

    यहाँ रिश्ते भी नाप-तौल में तुले हैं,

    मुस्कानें दिखती हैं,

    पर आँखें ख़ाली रहती हैं।

    सफलता के मापदंड,

    दूसरों की असफलताओं पर खड़े होते हैं।

    विज्ञापनों की चकाचौंध,

    सच को झूठ में बदल देती है।

    हर कोना, हर दीवार,

    मनुष्यता के खोखलेपन का गवाह है।

    संवेदनाएँ सिक्कों में तौली जाती हैं,

    और आत्मा के स्वर दब जाते हैं।

    परंतु, इस शोर के बीच भी,

    कोई दिल चुपचाप रोता है।

    कहीं कोई बच्चा,

    अभी भी आसमान को छूने का सपना देखता है।

    शहर का जीवन,

    एक संघर्ष है,

    पर शायद, उम्मीद का बीज

    अब भी कहीं उग सकता है।

    क्या हम इसे सींच पाएँगे?

    स्रोत :
    • रचनाकार : उत्कर्ष पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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