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ख़ुदाई में मिले सिक्के

khudai mein mile sikke

अनिल मिश्र

अनिल मिश्र

ख़ुदाई में मिले सिक्के

अनिल मिश्र

पुरातत्वविदों की टीम आई है

और इस स्थल का उत्खनन कर रही है

सूरज एकाएक जैसे ठिठक गया है

बहुत पुरानी चीज़ों के फिर दिख जाने के आश्चर्य से भरा हुआ

ख़ुदाई में पुरानी सभ्यता के कई महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं

नीचे मिट्टी के दबे हुए मृदभाँड हैं

मृदभाँडों के अंदर राख़ है

राख़ में मिट्टी के खिलौने और कुछ सिक्के हैं

इतने वर्षों तक राख़ की निगहबानी में

साथ सोते रहे सिक्के और खिलौने

सदियों की महानिद्रा से उठकर

आज जब आँखें खुलीं तो सिक्के ने देखा

कि दुनिया बहुत बदल चुकी है

वो राजा जिसका चित्र बदन पर अंकित है

उसका नामो निशान भी मिट चुका है

उसकी आज्ञाएँ हैं उसका राज-पाट

जिसके खनकने से बाज़ार की धड़कने बढ़ जाती थीं

जिनके खनकने से घर ओढ़ लेते थे

गहरी उदासी की स्याह चादर

वह चारों ओर असहाय देख रहा है

सैर सपाटे राग रंग सोना-चाँदी धरम-करम

राज्य और सत्ता की नसों में बहता ख़ून गरम

महलों से लेकर सड़कों तक चौराहों की चमक-दमक

ऐसा लगता है

अपनी घूमती हुई परछाईं के चक्र में फँसकर

वक्त के डैने लहूलुहान हो गए हैं

वक्त ही बहेलिया है ताक़ में बैठा हुआ

कुछ भी कर सकने और कुछ भी ख़रीद सकने का

उसका गुरूर टूटता हुआ दिखा

बाज़ार में अब चल रहे सिक्कों के उपहास का

पात्र होने का डर सताने लगा

गतमूल्य और हतप्रभ सिक्का सोचने लगा

अधिक से अधिक उन्हें किसी संग्रहालय में सजा दिया जाएगा

अच्छा होता—

मैं वर्षों की ठंडी राख़ में पकता हुआ खिलौना बन जाता

जिसे लेकर बच्चे भागते एक-दूसरे से छीनते

और नाचने लगते ख़ुशी से निहाल होकर

स्रोत :
  • रचनाकार : अनिल मिश्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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