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शब्द नहीं गिरते

shabd nahin girte

अशोक वाजपेयी

अन्य

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अशोक वाजपेयी

शब्द नहीं गिरते

अशोक वाजपेयी

और अधिकअशोक वाजपेयी

    शब्द नहीं गिरते समय पर

    वे गिरते हैं धरती पर—

    जिस पर गिरती है धूप,

    वर्षा, ऋतुएँ।

    शब्द गिरते हैं हमेशा धरती पर जिस पर

    गिरता है ख़ून

    उड़ती है धूल

    बनता है कीचड़।

    धरती पर जहाँ गिरते हैं शस्त्र,

    शव और बेरहमी से काटे गए अंग-प्रत्यंग,

    युद्ध की पताकाएँ,

    टूटे हुए पहिए, गाड़ीवान का चाबुक,

    भदरंग गुड़िया, अधटूटा-अधप्यासा प्याला,

    पहाड़ी बूढ़े का कनटोप

    और खटमलों से भरी गुदड़ी

    वहीं, उसी के आस-पास गिरते रहते हैं शब्द :

    जैसे अपने निरपराध और भोले माता-पिता के मारे जाने पर

    नाराज़ बेटा घूरे पर फेंक देता है प्रार्थना।

    शब्दों को सिर्फ़ समय नहीं, जगह चाहिए।

    उन्हें चाहिए सुलगने के लिए सुनसान।

    फैलने के लिए चाहिए हरा वितान।

    समय घिरा-अँटा है,

    उसके पास जगह की तंगी है :

    शब्द गिरते हैं धरती पर

    समय पर नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अशोक वाजपेयी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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