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शब्द और रंग

shabd aur rang

सुरेंद्र स्निग्ध

अन्य

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सुरेंद्र स्निग्ध

शब्द और रंग

सुरेंद्र स्निग्ध

और अधिकसुरेंद्र स्निग्ध

    एक

    आज की रात

    आकाश में है भरा-पूरा चाँद

    सागर के अनंत विस्तार पर

    तनी हुई है चाँदनी

    आज सारी रात

    हम सुनेंगे

    सागर-संगीत की विविधता

    हम गौर से सुनेंगे

    एक-एक सिंफनी के छोटे-छोटे नॉट्स

    सारी रात गिनेंगे हम

    लहरों पर नाचती

    एक-एक चाँदनी

    जो कर रही है पैदा

    जादुई करिश्मा

    प्रतिक्षण प्रतिपल

    बुन रही है

    मायावी संसार का जाल

    हम खोज रहे हैं शब्द

    सहायता करना, मित्रे

    शब्द ढूँढ़ने में

    सहायता करना

    रंगों के माध्यम से

    भाषा की तलाश में

    ऐसी भाषा

    जो अभिव्यक्त कर सके

    सागर-सौंदर्य

    अभिव्यक्त कर सके

    मेरे हृदय की भावनाएँ

    बहुत आसानी से छू सकें जिन्हें

    तुम्हारी कोमल पतली उंगलियाँ

    आज हम

    बैठेंगे सारी रात

    एक-दूसरे की उपस्थिति का

    करते हुए सार्थक अहसास

    एक-दूसरे के जीवन

    की किताबों की खाली

    जगहों पर

    लिखते हुए एक नई कविता

    भरते हुए

    उदासी

    के कई कई रंग

    दो

    बीत गई रात

    हाँ, बीत ही गई

    देखिये न, थोड़ा उधर देखिए

    पंछियों का एक बड़ा-सा झुँड

    समुद्र की लहरों को छूता हुआ

    अभी-अभी

    गुजर गया है पूरब की ओर

    घोल गया है लहरों में

    हलचल और कलरव का संगीत

    फैला गया है चारों ओर

    इसी संगीत की ख़ुशबू

    मछुआरे पैठ गए हैं

    समुद्र में

    छोटी-छोटी नौकाओं के साथ

    और

    सूरज के उगने के पहले की लाली

    बिछ रही है लहरों पर

    निस्तेज हो रहा है

    रातभर का चला चाँद

    उठिए,

    चलिये अपने-अपने कमरे में

    उठ रहे होंगे

    साथ के लड़के और लड़कियाँ

    कहेंगे पागल हैं हमलोग

    छत पर बैठे रह गए सारी रात

    और भी कुछ कह सकते हैं

    और भी कुछ...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुरेंद्र स्निग्ध
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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