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अभिसार

abhisar

उपासना झा

अन्य

अन्य

उपासना झा

अभिसार

उपासना झा

इस तेज़ भागती दुनिया में

एक दुपहर

चुपचाप, दीवारों को भी ख़बर किए बिना

मिले दो प्रेमी

दुनिया, जिसमें प्रेम बहुत कम है

मिलने की जगहें

उससे भी कम

मिले वे जैसे

आधी रात के बाद

चुपचाप गिरती है शीत

जैसे ठंडी रहती है भीत

जैसे झरते हैं शिउली फूल

चुपचाप जैसे जमती है धूल

जैसे हवा उड़ाती है मेघ

हथेली में उगती है रेख

जैसे जेठ में होती है बरसात

जैसे शरद पूर्णिमा की हो रात

जैसे बसंत में खिलता है पलाश

जैसे निर्जल में लगती है प्यास

वंचित स्वप्नों की जगह भरी

उन्होंने साझी दुपहरी से

संग-संग हँसते हुए

हँसती आँखों से रोए संग

देह को ओढ़ी रही देह

आत्मा लिपटी रही आत्मा से

उँगलियाँ कहती रहीं

अनगिनत विकल छंद

भाषा में कहाँ हैं वे शब्द

जो कह सकें

उनके हृदयों ने गाए

किस सुर में गीत

इतिहास नहीं दर्ज करता

जिन मुलाक़ातों को

कविताएँ रखती हैं

उन्हें अनंत काल तक याद

स्रोत :
  • रचनाकार : उपासना झा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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