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चतुर त्रिभुज

chatur tribhuj

अनुवाद : सोमदत्त

वास्को पोपा

अन्य

अन्य

वास्को पोपा

चतुर त्रिभुज

वास्को पोपा

और अधिकवास्को पोपा

     

    ऐसे-ऐसे किसी समय एक त्रिभुज था
    उसके तीन सिरे थे
    चौथे को छुपा रखा था उसने
    अपने जगमगजग केंद्र में

    दिन में चढ़ता ऊपर वह अपनी तीनों रेखाओं के
    और मुग्ध होता अपने केंद्र पे
    रात में आराम करता वह
    अपने तीनों में से किसी एक कोण में

    भोर में देखता वो
    तीन रोशन पहियों में बदल गई अपनी तीनों भुजाओं को
    अदृश्य होते अंतिम नील में

    निकालेगा वह अपनो चौथी भुजा
    चूमेगा उसे तोड़ेगा तीन बार
    और छिपा देगा फिर उसे उसकी जगह में

    फिर हो जाएगा वह तीन भुजा

    दिन होते ही फिर चढ़ेगा वह
    अपनी तीनों रेखाओं पर
    और सराहेगा अपने केंद्र को
    रात होते ही आराम करेगा वह
    अपने तीनों कोणों में से किसी एक में।

               
    स्रोत :
    • पुस्तक : नन्ही डिबिया (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : वास्को पोपा
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1988

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