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मुहल्ले में कपास का फूल

muhalle mein kapas ka phool

विजय सिंह

अन्य

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विजय सिंह

मुहल्ले में कपास का फूल

विजय सिंह

और अधिकविजय सिंह

    ताज़ काटन सेंटर का साइन बोर्ड

    दिसंबर की ठिठुरती धूप में

    कपास के फूल की तरह खिलता है

    ताज़ काटन सेंटर मुहल्ले में कबसे है

    मुझे नहीं पता

    रफ़ीक़ मियाँ को भी नहीं पता

    लेकिन वे जानते हैं

    उनके अब्बू के अब्बा ने

    उनके बचपन में खोला था

    मुहल्ले में ताज़ काटन सेंटर

    तब से मुहल्ला उनका है

    और

    मुहल्ले के हैं ताज़ काटन सेंटर के रफ़ीक़ मियाँ

    ठंड की ठिठुरती धूप में रफ़ीक़ मियाँ के हाथों

    कपास के फूल हँसते हैं

    अभी उनकी उँगलियों में थिरक रही है सुई

    सुई में खिल रहा है धागा

    धागे में खिलता है कपास का फूल

    रफ़ीक़ मियाँ के सिर के बाल यूँही सफ़ेद नहीं हुए हैं

    वे मुहल्ले में गद्दा सिलते-रूई

    धूनते बढ़े हुए हैं

    वे जानते हैं अपने शहर, अपने मुहल्ले, अपने आस-पड़ोस को

    जिनके प्रेम,दुआ सलाम से खिलता रहा है उनका जीवन

    रफ़ीक़ मियाँ जानते हैं

    समय पहले जैसे नहीं रहा

    उन्हें पता है आज के शहर के मिज़ाज का

    डनलप के सपनों में सोये शहर में दिन में भी जगमगाती हैं रातें

    और मुहल्ले में नहीं सुनाई पड़ती बच्चों की हँसी

    इसलिए वे डरते हैं

    डरता है उनके साथ ताज़ काटन सेंटर का साइन बोर्ड

    उन्हें पता है इधर

    छीना जा रहा है हाथों से हुनर

    और माथे से पसीने की चमक

    रफ़ीक़ मियाँ अक्सर सोचते हैं

    क्या कोई शहर, कोई मुहल्ला चमाचम रोशनी से

    कपास के फूल की तरह खिल सकता है

    रफ़ीक़ मियाँ जानते हैं

    मुट्ठी भर लोगों ने रचा है इस समय को

    जिनके हाथ मेहनत से कभी नहीं उठते

    बल्कि जिनके पाँव माल-शापिग काम्प्लेक्स के लिफ़्ट से उठते हैं

    वे ही हर बार, हर जगह अपने हिसाब से

    गढ़ते हैं एक बेसुध जीवन-एक बाज़ार

    जिसमें मिट्टी है पसीने की चमक

    लेकिन उनका क्या

    जो हिसाब-किताब में हमेशा कच्चे रहे

    कच्चे रहे जिनके मकान

    जिन्होंने ऋतुओं को जिया

    ऋतुओं से लड़ा

    और

    ऋतुओं से पाया जीवन

    रफ़ीक़ मियाँ आज भी उन लोगों पर होते हैं कुर्बान

    जिनके पाँव में मिट्टी है

    और हाथों में मेहनत

    उनके लिए ख़ुशी से हर बार

    सिलते हैं गद्दा, धुनते हैं रूई

    आप जानते हैं

    रफ़ीक़, मियाँ आज भी मुहल्ले में हैं

    मुहल्ले में है ताज़ काटन सेंटर इसलिए

    मुहल्ले में कपास का फूल है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजय सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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