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अपना-अपना वसंत

apna apna vasant

रवि यादव

रवि यादव

अपना-अपना वसंत

रवि यादव

और अधिकरवि यादव

    कुछ गुलमोहर अब भी 

    टँके हुए है आसमान के पेड़ से

    जो खिल रहे हैं थोड़े विलंब से

    क्यूँकि उन्हें मालूम है थोड़ा समय लगेगा

    कहीं किसी का वसंत आने में।

    जब कोई जाना चाहे तो उसे जाने देना चाहिए स्वतंत्र।

    वैसे जैसे एक ऋतु जाने देती है दूसरे ऋतु को।

    जाने देना चाहिए जैसे पहाड़ रोक कर भी नहीं रोकते नदी को और 

    वृक्ष फूलों को।

    किसी के चले जाने के बाद

    वो ज़्यादा गहरे स्तर पर

    बचा रह जाता है हमारे पास

    हमारी स्मृतियों में।

    दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का अपना अपना वसंत होता है।

    जो आता है अपने अपने समय के दहलीज़ पर

    अपने समय में।

    वो फूल बड़े विलक्षण होते हैं जो बेसमय खिलते हैं शाखों पर

    जिनका मौसम हो चैत्र पर खिले वो आषाढ़ की बूँदों पर

    कुछ चीजें समय पर हों तो उनका कोई अर्थ नहीं रह जाता।

    लेकिन फिर भी मौसम के विपरीत भी यदि आए कोई वसंत

    तो उसे भी सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।

    जो ख़ुशी अप्रैल के गर्मी में खिला गुलमोहर देता है,

    उससे कहीं ज़्यादा ख़ुशी 

    आषाढ़ का इकलौता, रास्ते पर खिला गुलमोहर देता है।

    बारहमासी कहे जाने वाला पेड़ भी

    नहीं फलता बारहमास।

    फिर कैसे एक ही सुख एक ही दुःख को आजीवन लेकर चलने का ख़्याल रखते हैं हम।

    कविताओं के अंत ने हमेशा मुझे मारा है,

    वैसे-जैसे मृत्यु जब आती है और नहीं कहने देती सारी बातें और

    अटक जाते हैं शब्द गले में।

    छीन ही लेती है वो कुछ कुछ अधूरे शब्द हमसे।

    मैंने जब-जब एक कविता का अंत करना चाहा,

    तब-तब कविता ने ही मेरी हत्या कर दी है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रवि यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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