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सपना और दीवार

sapna aur divar

लैंग्स्टन ह्यूज़

अन्य

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लैंग्स्टन ह्यूज़

सपना और दीवार

लैंग्स्टन ह्यूज़

और अधिकलैंग्स्टन ह्यूज़

    बहुत दिन हो गए!

    मैं अपने सपने को लगभग भूल चुका था।

    लेकिन सपना अनश्वर था

    मेरे सामने,

    झिलमिलाते हुए सूरज की तरह

    मेरा सपना!

    और फिर दीवार उठी,

    धीरे-धीरे,

    मेरे और मेरे सपने के बीच।

    उठती गई धीरे-धीरे

    मेरे सपने की रोशनी को

    धुँधला करते हुए,

    रोशनी का गला घोंटते हुए!

    यहाँ तक कि

    आकाश चूमने लगी

    वह दीवार!

    दीवार की छाया...

    ...मैं काला हूँ...

    मैं काली छाया में कुलबुला रहा हूँ।

    मेरे सपनों की रोशनी

    मेरे चारों ओर है,

    मुझ पर आशीर्वाद-सी छाई है।

    सिर्फ़ काली पुख़्ता दीवार

    और उसकी कड़वी छाया!

    मेरे हाथों!

    मेरी काली मज़बूत भुजाओ!

    तोड़ दो इस दीवार को,

    ढूँढ़ लाओ मेरे सपने

    इस अँधेरे को चूर-चूर कर दो

    इस छाँह को चीर कर फेंक दो,

    सूरज की सहस्रों किरणें धधक उठें!

    लाल भट्टी की तरह सुलगते हुए

    लाखों सपने

    पवित्र सूरज के!

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 270)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : लैंग्स्टन ह्यूज़
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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