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दयालुता

dayaluta

अनुवाद : एम. जी. वेंकटकृष्णन

तिरुवल्लुवर

अन्य

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तिरुवल्लुवर

दयालुता

तिरुवल्लुवर

और अधिकतिरुवल्लुवर

    241

    सर्व धनों में श्रेष्ठ है, दयारूप संपत्ति।

    नीच जनों के पास भी, है भौतिक संपत्ति॥

    242

    सत्-पथ पर चल परख कर, दयाव्रती बन जाय।

    धर्म-विवेचन सकल कर, पाया वही सहाय॥

    243

    अंधकारमय नरक है, जहाँ सुख लवलेश।

    दयापूर्ण का तो वहाँ, होता नहीं प्रवेश॥

    244

    सब जीवों को पालते, दयाव्रती जो लोग।

    प्राण-भयंकर पाप का, उन्हें होगा योग॥

    245

    दुःख- दर्द उनको नहीं, जो है दयानिधान।

    पवन संचरित उर्वरा, महान भूमि प्रमाण॥

    246

    जो निर्दय हैं पापरत, यों कहते धीमान।

    तज कर वे पुरुषार्थ को, भूले दुःख महान॥

    247

    प्राप्य नहीं धनरहित को, ज्यों इहलौकिक भोग।

    प्राप्य नहीं परलोक का, दयारहित को योग॥

    248

    निर्धन भी फूले-फले, स्यात् धनी बन जाय।

    निर्दय है निर्धन सदा, काया पलट जाय॥

    249

    निर्दय-जन-कृत सुकृत पर, अगर विचारा जाय।

    तत्व-दर्श ज्यों अज्ञ का, वह तो जाना जाय॥

    250

    रोब जमाते निबल पर, निर्दय करे विचार।

    अपने से भी प्रभल के, सम्मुख ख़ुद लाचार॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल : भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

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