मन्मथ-संवत्सर का स्वागत

manmath sanvatsar ka svagat

माधव श्रीहरि अणे

माधव श्रीहरि अणे

मन्मथ-संवत्सर का स्वागत

माधव श्रीहरि अणे

प्रजा के आनंद के स्रोत उस मीनकेतु (कामदेव) को नमस्कार है,

जिसके नाम से, जय-वर्ष की समाप्ति पर, मन्मथ संवत्सर आरंभ हुआ है।

समस्त पृथ्वी को आक्रांत करके जो संसार में अशांति फैलाते हैं,

उन राजाओं के उस गर्व को मैं व्यर्थ समझता हूँ, जो अन्य देशों को जीतने

से होता है।

शस्त्र युद्ध से विश्व शांति की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। अणु आदि

बमों के निर्माण से संसार का विनाश ही होगा।

शत्रु का (हृदय) परिवर्तन करने के लिए विनम्रतापूर्वक जिज्ञासा,

स्नेहपूर्वक वार्तालाप आदि के द्वारा शांत प्रयत्न करने चाहिए।

मनुष्य मन के वश में रहता है, इसलिए उसके मन को बदल देने से

असाध्य विषयों में भी निश्चित सफलता होगी।

जय वर्ष में फ्रांसीसियों की अनुकूलता से उनके सत्ताधीन पांडिचेरी

आदि प्रदेशों का भारत में समावेश हो गया।

भारत का पुत्र, उसके समुद्र का रक्षक, गोआ, पुर्तगाली सर्पों की

विषजन्य पीड़ा से बड़ा व्याकुल है।

इस मन्मथ-संवत्सर में गोआ भारत के गले मिले—अपनी सारी

गंदगी धोकर पुत्र पिता के घर लौट आए।

विश्वास का प्रादुर्भाव हो, संदेह का लोप हो, विश्व में स्नेह का सागर

लहराए और कलह जल में डूब जाए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 713)
  • रचनाकार : माधव श्रीहरि अणे
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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