Font by Mehr Nastaliq Web

सन्नाटे का संगीत

sannate ka sangit

सुधा अरोड़ा

अन्य

अन्य

सुधा अरोड़ा

सन्नाटे का संगीत

सुधा अरोड़ा

और अधिकसुधा अरोड़ा

    अकेली औरत

    नींद को पुचकारती है

    दुलारती है

    पास बुलाती है

    पर नींद है कि रूठे बच्चे की तरह

    उसे मुँह बिराती हुई

    उससे दूर भागती है!

    अपने को फुसलाती है

    सन्नाटे को निहारती है

    देख तो

    कितना ख़ुशनुमा सन्नाटा है

    कम से कम

    खर्राटों की आवाज़ से तो बेहतर है!

    लेकिन नहीं...

    जब खर्राटे थे

    तो चुप्पी की चाहत थी

    अब सन्नाटा कानों को

    खर्राटों से ज़्यादा खलता है!

    सन्नाटे में

    सन्नाटे का संगीत सुनना चाहती है

    अकेली औरत

    पर आलाप को

    कुछ ज़्यादा ही लंबा खिंचते देख

    उसकी अनझपी पलकें

    खिड़की से बाहर

    आसमान तक की दूरी तय करती हैं

    और सितारों के मंडल में

    अपने लिए एक सवाल खोज लेती है

    जिसका जवाब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते

    चाँद ढलान पर चला जाता है।

    सुबह का सूरज जब

    आसमान के कोने से झाँकने की

    कोशिश कर रहा होता है

    अकेली औरत की बोझिल पलकें

    आसमान पर लाली बिखरने से पहले

    मुँदने लगती हैं।

    रोज़ की तरह

    वह देर सुबह उठेगी

    रोज़ की तरह

    अपने को कोसेगी

    कि आज भी उगता सूरज देख नहीं पाई...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुधा अरोड़ा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए