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समझौता

samjhauta

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

जगन्नाथ प्रसाद दास

अन्य

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और अधिकजगन्नाथ प्रसाद दास

    अँधेरे को छिन्न-भिन्न कर

    जब तुम

    अप्रस्तुत सुबह की तरह

    परिपार्श्व के समन्वय को तोड़ती हुई आओगी

    मैं समझूँगा

    मेरा आधिपत्य अब संभव नहीं

    स्मृति खोने से पहले

    मैं तुम्हारे लिए

    एक याद भरी पंक्ति

    लिख जाऊँगा

    अपरिपक्व रात्रि के अंत में

    सुबह का सामना करने

    मैं बाहर निकलूँगा

    जहाँ मेरा अधिकार

    सिर्फ़ तुम्हें

    नारंगी धूप बनकर छा जाते देखना होगा

    जहाँ मृत्यु के साथ

    समझौता कर लेने पर

    स्मृति खोने का डर नहीं रह जाएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लौट आने का समय (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : जगन्नाथ प्रसाद दास
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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